दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों में जान-माल का नुक़सान उठाने के बाद उल्टा हिंदुओं को ही दंगाई बनाकर फँसाया गया है। ये मामला है उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मौजपुर इलाक़े का, जहां पुलिस ने पीड़ितों को ही दंगों का आरोपी बना दिया। 25 फ़रवरी को यहाँ हुई हिंसा में परवेज़ आलम नाम के एक व्यक्ति की गोली लगने से मौत हो गई थी। मृतक के बेटे की शिकायत के आधार पर पुलिस ने इलाक़े के 16 लोगों को आरोपी बनाकर जेल में डाल दिया, जबकि इनमें से कई ऐसे हैं जिनकी ख़ुद की दुकान और मकान इस दंगे में जला दिए गए। पुलिस ने इन लोगों की एफआईआर पर कोई कार्रवाई नहीं की। हद तब हो गई जब मीडिया के एक वर्ग ने यह झूठ फैलाना शुरू कर दिया कि ये सभी लोग आरएसएस के कार्यकर्ता हैं। सभी 16 आरोपियों के परिवारों का बुरा हाल है। एक की बेटी की सदमे से मौत हो गई, लेकिन कोर्ट ने उसे जमानत तक नहीं दी। एक 23 साल का आरोपी लवी कुमार कोरोना पॉजिटिव है।
दंगा पीड़ितों को बनाया दंगाई!
मौजपुर के इस मामले में पुलिस ने जिन 16 लोगों को पकड़ा है वो सभी सामान्य दुकानदार और नौकरीपेशा लोग हैं। ज़्यादातर अपने परिवारों के इकलौते कमाऊ सदस्य हैं। ये पूरा इलाक़ा चारों तरफ़ से मुस्लिम आबादी से घिरा हुआ है। 24 फ़रवरी को हिंसा में उनके घरों पर भी हमले किए गए। 25 फ़रवरी को परवेज़ आलम नाम के एक व्यक्ति की मौत गोली लगने से हुई। पुलिस ने बिना किसी सबूत के सिर्फ़ मृतक के बेटे साहिल परवेज के बयान को आधार बनाते हुए सभी को गिरफ्तार कर लिया। अब ये सभी बेहद डरे हुए हैं। उनकी सहायता करने वाला भी कोई नहीं है। कई लोगों ने तो डर के मारे बोलना भी बंद कर दिया है, क्योंकि उन्हें धमकियाँ मिल रही हैं। यह भी पढ़ें: दिल्ली के दंगाइयों को अरब से भेजा जा रहे थे पैसे, जाँच में खुलासा
परवेज़ ने कई बार बयान बदले
साहिल परवेज़ ने पिता की मौत के कारण और जगह को लेकर अब तक तीन तरह के बयान दिए हैं। मीडिया से बातचीत में उसने घर की सीढ़ियों पर मौत बताया था। बाद में उसने अलग जगह बताई। एफआईआर में जो जगह लिखाई वो कुछ और ही है। उसका कहना है कि उसके अब्बा नमाज़ पढ़कर लौट रहे थे। लेकिन पुलिस ने उसकी जेब से एक दर्जन कारतूस बरामद किए। जिससे शक होता है कि वो ख़ुद ही दंगाई था। नमाज़ पढ़ने की बात पड़ोसियों का कहना है कि परवेज़ आलम की मौत दरअसल आपसी रंजिश में हुई है। पड़ोस में ही रहने वाले एक मुस्लिम परिवार से उनका प्रॉपर्टी का झगड़ा है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक़ गोली ऊपर से चलाई गई है, जबकि परवेज़ का बयान है कि दंगाइयों ने सामने से गोली मारी।
ख़ौफ़ के साये में हैं हिंदू परिवार
इलाक़े के लोग डरे हुए हैं और कई तो अपना घर-बार बेचकर किसी और जगह जाने के बारे में सोचने को मजबूर हैं। एफआईआर में 24 लोगों के नाम लिखाए गए थे, जिनमें से कई तो उस दिन कहीं बाहर गए हुए थे। ऐसे लोग गिरफ़्तारी से बच गए, लेकिन जो भी लोग उस दिन अपने घरों में थे, पुलिस ने उन सभी बिना किसी सबूत के गिरफ्तार कर लिया। ऐसे ही आरोपी बनाए गए कुछ पीड़ितों की कहानी:
- लवी कुमार चौधरी: कोरोना पॉज़िटिव, लेकिन कोर्ट ने कोई राहत नहीं दी। घर का इकलौता कमाऊ सदस्य। पिता बीमार। (नीचे आप लवी की बहन का बयान सुन सकते हैं)
- जयवीर तोमर: मेडिकल स्टोर और गाड़ी दंगाइयों ने जलाई। मकान का एक हिस्सा भी जला। पुलिस को दंगाइयों की CCTV फुटेज भी दी थी।
- हरिओम मिश्रा: होटल चलाते थे, दंगाइयों ने जलाकर ख़ाक कर दिया। अब जेल में बंद। गिरफ़्तारी के समय बिल्कुल ठीक थे। पेशी में उनके सिर पर पट्टी बंधी थी। शक है कि हिरासत में पुलिस ने मारा-पीटा है।
- उत्तम चंद्र मिश्रा: 19 साल की बेटी की सदमे से मौत। बेटी के अंतिम संस्कार में जाने को ज़मानत नहीं मिली। बाद में 30 जून को सिर्फ़ 6 घंटे की पैरोल मिली, जिसे लेने से उन्होंने इनकार कर दिया। इनकी बिजली की दुकान जला दी गई।
- राजपाल त्यागी: बेटी बीमार है। पत्नी की किडनी फेल हो चुकी है और उनका इलाज राममनोहर लोहिया अस्पताल में चल रहा है।
- उत्तम त्यागी, नरेश त्यागी: दंगाइयों ने बाइक जलाई, 24 फ़रवरी को एक सगाई में बागपत गए थे और घर में आगज़नी और पथराव की ख़बर सुनकर लौटे थे।
कोरोना संक्रमित लवी कुमार की बहन कनिका चौधरी से बातचीत आप नीचे वीडियो पर क्लिक करके देख सकते हैं:
नीचे उत्तमचंद मिश्रा की दुकान, वो ख़ुद दंगाई होने के आरोप में जेल में बंद हैं।
(न्यूज़लूज़ टीम)