क्या आप जानते हैं कि 2005 में नॉर्थ-ईस्ट में बसे 7000 यहूदियों (Jews) को उनके धार्मिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया था? माना जाता है कि ये सब तब की केंद्र सरकार के इशारे पर हुआ था। ये मामला दरअसल भारत के ईसाईकरण के एजेंडे से जुड़ा हुआ है। ये पूरी कहानी अपने-आप में किसी केस स्टडी की तरह है कि कैसे भारत में अलग-अलग जनजातियों और दूसरे समूहों को ईसाई धर्म कबूलने के लिए मजबूर किया जाता रहा है। दरअसल मणिपुर में बिनाई मेनाशे (Bnei Menashe) नाम का एक जनजातीय समूह रहता है। उनकी कुल संख्या 7000 के आसपास है। सालों पहले ये लोग यहां आकर बसे और इन्हें ईसाई समझ लिया गया। धीरे-धीरे लोग भी अपनी धार्मिक परंपराओं और पहचान से कट गए। कुछ साल पहले इस समुदाय के कुछ पढ़े-लिखे लोगों ने जब अपनी जड़ें तलाशनी शुरू कीं तो गूगल पर उन्हें अपने नाम का मतलब पता चला। उन्हें पता चला कि वो ईसाई नहीं, बल्कि यहूदी हैं।
अपनी जड़ों की तलाश
समुदाय के लोगों ने यहूदी धार्मिक संस्थाओं से संपर्क किया और वापस अपनी धरती इज़राइल जाने की इच्छा जताई। इस पर इज़राइल ने हेड रब्बी (यहूदी पुजारी) को जाँच का ज़िम्मा दिया। पाया गया कि इस समुदाय के लोग अभी भी कुछ यहूदी धार्मिक परंपराओं से जुड़े हुए थे। वो हर सप्ताह दूसरे यहूदियों की तरह शब्बात (Shabbat) का आयोजन करते थे। इस समुदाय के ज्यादातर लोग मणिपुर के इंफाल, चूड़ाचांदपुर और कांगपोकपी जिलों में रहते हैं। बिनाई मेनाशे के कुछ परिवार मिजोरम में भी रहते हैं। हालांकि समय के साथ इनमें काफी बदलाव आए हैं। यहां तक कि चेहरे-मोहरे से भी ये लोग चाइनीज जैसे दिखते हैं। ज्यादातर लोग मणिपुर की स्थानीय बोलियां ही बोलते हैं।
कैसे यहाँ तक पहुँचे?
बिनाई मेनाशे समुदाय के लोग मणिपुर और मिज़ोरम कैसे पहुँचे इसे लेकर तरह-तरह की राय हैं। माना जाता है कि अरब में इस्लामी शासकों की प्रताड़ना से बचने के लिए ये लोग चीन होते हुए यहाँ तक पहुँचे। समुदाय के बुजुर्गों का कहना है कि उनके बाप-दादा बताते थे कि यहाँ आने से पहले वो गुफाओं में रहते थे। अंग्रेजों के आने के बाद इन्हें जबरन ईसाई बना दिया गया। 1950 के आसपास उनकी परंपराएँ देखकर कुछ ईसाई पादरियों को शक हुआ कि ये यहूदी (Jew) हैं और इनका ताल्लुक येरूशलम से है। क्योंकि मनाशे नाम का एक चरित्र बाइबिल में भी आता है। ईसाई, इस्लाम और यहूदी तीनों की उत्पत्ति अरब के एक ही इलाके से हुई है। इस कारण इन्हें अब्राहमिक धर्म भी कहा जाता है। मुसलमान यहूदियों को अपना दुश्मन मानते हैं क्योंकि वो प्रकृति पूजक होते हैं।
नीचे आप मणिपुर में रहने वाले बिनाई मेनाशे परिवारों के बच्चों को हनुक्का त्यौहार मनाते देख सकते हैं।
NORTHEASTERN INDIA’S ‘LOST’ JEWISH TRIBE LIGHTS CANDLES FOR FIRST NIGHT OF HANUKKAH
CHURACHANDPUR, India. Thousands of members of the Bnei Menashe community from across northeastern India gathered today to light candles for the first night of Hanukkah with Shavei Israel pic.twitter.com/8HL3S7dFGe
— Zvika Klein (@ZvikaKlein) December 12, 2017
सोनिया गांधी का अड़ंगा
भारत में रहने वाले लगभग सभी बिनाई मेनाशे परिवार अपनी मातृभूमि इज़राइल लौटना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने 2005 में इस्राइली यहूदी संस्थाओं से सहायता माँगी। चूँकि ये लोग ईसाई बन चुके थे, इसलिए ज़रूरी था कि उनका औपचारिक धर्मांतरण कराया जाए। 2005 में जब यहूदी संस्थाओं के लोगों ने इस काम के लिए भारत का वीसा माँगा तब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने फ़ौरन इनकार कर दिया। जबकि इसी दौरान विदेशी ईसाई मिशनरियों को बड़े आराम से वीजा दिया जाता रहा। चर्च नहीं चाहता था कि कोई ईसाई धर्म छोड़े। सोनिया गांधी ने उनकी मदद कर दी। नतीजा यह हुआ कि उस समय यह काम अटक गया और समुदाय के लोग ईसाई मिशनरियों के चंगुल में फँसते चले गए।
कुछ लोग इज़राइल गए
तत्कालीन कांग्रेस सरकार के अड़ंगे के बाद कुछ लोग निजी प्रयासों से इज़राइल जाने में सफल रहे। 2007 के आसपास कई परिवार वहाँ जाकर बस भी गए। इज़राइल में 18 साल का होते ही सेना में भर्ती होना ज़रूरी होता है। यहाँ से गए कई परिवारों के लड़के इज़राइली सेना में भी काम कर रहे हैं। 2014 में मोदी सरकार आने के बाद लोगों ने फिर से कोशिश शुरू की, लेकिन अब इज़राइल सरकार का मन बदल चुका है। अब सिर्फ़ उन्हीं लोगों को वापस लिया जा रहा है जो पूरी तरह यहूदी परंपरा अपना चुके हैं और हिब्रू भाषा सीख चुके हैं। इस कारण कम लोग ही अब वहाँ जा पाते हैं। हालाँकि ज़्यादातर लोग अपनी नई पीढ़ी को हिब्रू सिखा रहे हैं। इसके लिए इज़राइली संस्थाओं के रब्बी यहाँ काम कर रहे हैं। 2017 में पीएम नरेंद्र मोदी जब इज़राइल गए थे तो बिनाई मेनाशे समुदाय के लोग उनसे मिलने भी पहुँचे थे।

चर्च के झाँसे में बंटे लोग
एक समस्या यह भी आ रही है कि कई लोग चर्च से मिलने वाले लालच के चलते वापस यहूदी बनने को तैयार नहीं हैं। हालाँकि वो भी इज़राइल जाकर अपने रिश्तेदारों के साथ वहीं बसना चाहते हैं। यह समस्या कांगपोकपी में रहने वाले लगभग 1000 लोगों के साथ आ रही है जो ईसाई ही बने रहना चाहते हैं। इस कारण इज़राइल उन्हें वीसा नहीं दे रहा। फ़िलहाल उम्मीद की जा रही है कि 2030 तक यहूदियों की ये लापता जनजाति सैकड़ों साल बाद पूरी तरह से अपनी मातृभूमि तक पहुँच जाएगी।
Beautiful! Indian Jewish children of Bnei Menashe sing Israel’s national anthem. 🇮🇱🇮🇳 pic.twitter.com/UlEP173G2T
— Hananya Naftali (@HananyaNaftali) August 13, 2019
हालाँकि जो लोग इज़राइल पहुँच गए हैं उनके आगे वहाँ के समाज में घुलने-मिलने का संकट है। इज़राइल सरकार ने ऐसे लोगों को वेस्ट बैंक इलाक़े में बसाया है। जहां अक्सर युद्ध का ख़तरा होता है। दिखने में चीनियों जैसा होने के कारण अक्सर इज़राइली लोग भी उनसे बाहरी जैसा बर्ताव करते हैं।
भारत में यहूदी धर्म
मणिपुर के बिनाई मेनाशे समेत भारत में 5 तरह के यहूदी समुदाय रहते हैं। कुछ केरल में हैं जो मलयालम बोलते हैं। इनके अलावा पश्चिमी एशिया से भागकर आने वालों को ‘बगदादी यहूदी’ के नाम से जानते हैं। तीसरा प्रकार मराठी यहूदियों का है, जिन्हें बेन इज़राइल भी कहते हैं। आंध्र प्रदेश में भी कुछ यहूदी परिवार हैं जो तेलुगु बोलते हैं।
(आशीष कुमार की रिपोर्ट)