चीन के साथ जारी तनाव के बीच एक ख़बर सोशल मीडिया पर सुर्खियों में है। दावा किया जा रहा है कि सरकार ने दिल्ली से मेरठ के बीच बन रहे रैपिड रेल ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम यानी RRTS लाइन का ठेका चीन की कंपनी शंघाई टनेल इंजीनियरिंग लिमिटेड (STEC) को दे दिया है। इसकी खबरें भी कुछ वेबसाइट्स पर छपी हैं, जिनके आधार पर यह दावा किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि सरकार एक तरफ आत्मनिर्भर भारत की बात कर रही है और दूसरी तरफ चीन की कंपनी को ठेका दिया जा रहा है। सोशल मीडिया पर कई लोग इस ठेके को रद्द करने की भी मांग कर रहे हैं। यहां तक कि RSS से जुड़ी संस्था स्वदेशी जागरण मंच ने भी इस मामले में बयान जारी किया है। हमने इस खबर और इसके साथ जुड़े दावे की पड़ताल शुरू की। यह भी पढ़ें: कौन लोग हैं जो चीन के हमले से खुश हैं, आस्तीन के सांपों को पहचानिए
क्या है ठेका देने के दावे का सच?
सबसे पहले आपको बता दें कि Shanghai Tunnel Engineering Co. Ltd चीन की कंपनी है, लेकिन भारत में जिस कंपनी ने बोली लगाई वो चीन नहीं बल्कि सिंगापुर में रजिस्टर्ड है। चूंकि इन्फ्रास्ट्रक्चर के ज्यादातर बड़े ठेकों में ग्लोबल टेंडर होते हैं इसलिए किसी कंपनी को बोली लगाने से रोका नहीं जा सकता है। वैसे भी ये मल्टीनेशनल कंस्ट्रक्शन कंपनी है जो चीन के बाहर कई देशों में काम कर रही है। इनमें अमेरिका और यूरोप के देश भी शामिल हैं। भारत सरकार की कंपनी नेशनल कैपिटल रीज़न ट्रांसपोर्ट (NCRTC) दिल्ली और आसपास के शहरों के बीच तेज आवागमन के लिए यह रेल प्रोजेक्ट चला रही है। इसके दिल्ली में अशोकनगर से साहिबाबाद के करीब 5.6 किलोमीटर के हिस्से में सुरंग बनाने के लिए ग्लोबल टेंडर निकाला गया था। जिसमें चीन की इस कंपनी ने सबसे कम यानी 1126 करोड़ रुपये की बोली लगाई। उसके बाद भारत की लार्सन एंड टूब्रो (L&T) है, जिसने 1170 करोड़ की बोली लगाई है। यह भी पढ़ें: ‘लद्दाख में चीन घुस गया’ का झूठ फैलाने वाले इन 3 चेहरों को पहचान लें
अभी किसी को ठेका नहीं दिया
इस काम के लिए टेंडर पिछले साल नवंबर में निकाला गया था और इसके लिए बोलियाँ खोलने का काम इस साल 16 मार्च को किया गया। जहां तक ‘आत्मनिर्भर भारत’ का सवाल है इसका एलान इसके बाद किया गया है। कंपनी के सूत्र ने न्यूज़लूज़ से बातचीत में साफ़ किया कि “अभी किसी भी कंपनी को ठेका नहीं दिया गया है। अभी सिर्फ़ बोलियाँ खोली गई हैं और आख़िरी फ़ैसला कंपनी के ही हाथ में है। क्योंकि हमें यह देखना होता है कि कोई कंपनी जो खर्च बता रही है तकनीकी रूप से उतने में काम करना संभव है भी या नहीं।” भारत सरकार से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि “यह नीतिगत मामला है क्योंकि एलएंडटी जैसी भारतीय कंपनियां भी चीन और दूसरे देशों में जाकर बोली लगाती हैं और ठेके हासिल करती हैं। अगर हम एक तरफ़ा रूप से किसी देश की कंपनी को ब्लॉक करते हैं तो इससे भारतीय कंपनियों को भी वहाँ नुक़सान उठाना पड़ सकता है।” फिलहाल आखिरी फैसला आना बाकी है और इस बारे में चल रही सारी खबरें आधारहीन हैं। यह भी पढ़ें: वो अफसर, जिन्होंने कांग्रेस सरकार से छिपाकर दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी खोल दी थी
(न्यूज़लूज़ टीम)