कोरोना वायरस संकट के बहाने एक बार फिर से हिंदू मंदिर सरकारों के निशाने पर हैं। देश के सबसे अमीर तिरुपति मंदिर की कई प्रॉपर्टी नीलाम करने की तैयारी हो रही है। आंध्र सरकार के आधिपत्य वाले तिरुमला तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट (Tirumala Tirupati Devasthanams) ने फैसला किया है कि मंदिर की कुल 50 अचल संपत्तियों को बेचकर पैसा जुटाया जाएगा। आंध्र प्रदेश सरकार के इस फैसले पर सारी सेकुलर पार्टियों ने चुप्पी साध रखी है। सिर्फ बीजेपी ने इसका विरोध किया है और कहा है कि अगर सरकार ने मंदिर की संपत्ति को हाथ भी लगाया तो वो आंदोलन करेगी। विरोध का बड़ा कारण ये है कि राज्य सरकारें कभी मस्जिदों या चर्च से इस तरह से पैसे नहीं लेतीं। आंध्र प्रदेश में चर्च के पास सबसे ज्यादा गैर-कृषि जमीन है, लेकिन सरकार उसे नहीं बेच रही। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ईसाई हैं और अपनी हिंदू विरोधी नीतियों के कारण बदनाम रहे हैं। यह भी पढ़ें: लंबे समय से मंदिरों के खजाने पर है गिद्धदृष्टि, अब तक करोड़ों की लूट
क्यों निशाने पर है तिरुपति मंदिर?
तिरुपति मंदिर की संपत्तियाँ और इसे मिलने वाला चढ़ावा हमेशा से आंध्र प्रदेश की सरकारों की लूट का शिकार होता रहा है। मौजूदा आदेश में कुल 50 संपत्तियों को बेचे का फ़ैसला हुआ है। ये तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और उत्तराखंड के ऋषिकेश में हैं। इनमें कई मकान और खेत भी शामिल हैं। ये वो संपत्तियाँ हैं जो श्रद्धालुओं ने मंदिर को दान में दी हैं। उम्मीद की जाती है कि मंदिर ट्रस्ट इन संपत्तियों का हिंदू समाज के भले के लिए प्रयोग करेगा। लेकिन सरकारी क़ब्ज़े वाला मंदिर ट्रस्ट अधिकतर इन संपत्तियों के दुरुपयोग के लिए ही चर्चा में रहता है। सरकार को उम्मीद है कि नीलामी से उसे कम से कम 24 करोड़ रुपये मिल जाएँगे। ये पैसे ‘राज्य की सहायता’ के नाम पर जुटाए जा रहे हैं। मतलब सरकार की मर्ज़ी होगी कि वो इसे चाहे जैसे खर्च करे। यह भी पढ़ें: हमेशा से हिंदू विरोधी रही है कांग्रेस, 10 सबसे बड़े सबूत
लॉकडाउन को बनाया गया बहाना
मंदिर प्रबंधन के अनुसार “नियमित खर्चों के अलावा सुरक्षा और कर्मचारियों को वेतन देने के लिए साल में करीब 125 करोड़ रुपये की आवश्यकता होती है। 24 मार्च से चल रहे लॉकडाउन के कारण मंदिर को केवल हुंडी से होने वाली 400 करोड़ रुपये की आय का नुकसान हुआ है। मंदिर की आय का यह प्रमुख स्रोत है जो भक्तों द्वारा चढ़ाए गए दान के रूप में मिलता है। लोगों का कहना है कि अगर घाटा हो रहा है तो सरकार चर्च और वक़्फ़ बोर्ड की ज़मीनें क्यों नहीं बेचती। क्योंकि आम दिनों में तिरुपति मंदिर के पैसे का बड़ा हिस्सा दूसरे धर्मों पर भी खर्च कर दिया जाता है। मंदिर के पास इस समय लगभग 9 टन सोना और 14 हजार करोड़ की एफडी है यह वो संपत्ति है जिस पर आंध्र की हर सरकार की गिद्ध दृष्टि रहती है।
हिंदू मंदिरों की सरकारी लूट जारी
आज़ादी के बाद ज़्यादातर बड़े हिंदू मंदिरों पर ट्रस्ट के ज़रिए सरकारों ने क़ब्ज़ा कर लिया। इन मंदिरों में जो भी चढ़ावा जाता है वो सरकारी ख़ज़ाने में जमा होता है। यह देखा गया है कि इस पैसे का बड़ा हिस्सा चर्च बनवाने और मस्जिदों और मदरसों में बाँट दिया जाता है। लिहाज़ा हिंदू समाज में इसे लेकर असंतोष बढ़ता जा रहा है। कोरोना वायरस के नाम पर ही पिछले दिनों केरल सरकार ने गुरुवयूर मंदिर से 5 करोड़ रुपये ले लिए। इसी तरह तमिलनाडु सरकार ने मंदिरों से 10 करोड़ रुपये जमा करने का फ़रमान सुनाया था। हर साल हज़ारों करोड़ रुपये इन मंदिरों से सरकारों को मिलते हैं, जिनमें से 2-4 फ़ीसदी मंदिरों के रखरखाव पर खर्च करके बाक़ी सारा पैसा सरकारें अपना सेकुलर एजेंडा पूरा करने पर लुटा देती हैं। फिलहाल बीजेपी ने इस फ़ैसले का विरोध करते हुए आंदोलन की धमकी दी है।
Many people brand us communal for daring to speak for rights of Hindus
But is it crime to seek justice for Hindus when parties like TDP,
YSRCP are hell bent in destroying everything Hindu?Recent decision of TTD of selling assets of Lord Balaji is clear proof of it#TTDForSale pic.twitter.com/MEE2MzOiYs
— Y. Satya Kumar (@satyakumar_y) May 23, 2020
(न्यूज़लूज़ टीम)