आर्य बाहरी थे और हजारों साल पहले वो आक्रमण करके भारत में आए थे। अंग्रेजों और जवाहरलाल नेहरू के इस झूठ का पर्दाफाश हो गया है। पहली बार यह बात वैज्ञानिक तरीके से साबित हो गई है कि उत्तर से लेकर दक्षिण तक सभी भारतीयों का खून एक है। इस बारे में बीते कुछ साल से डीएनए स्टडी चल रही थी, जिसके फाइनल नतीजे आ गए हैं। इसके मुताबिक आर्य-द्रविड़ हों या अगड़ी-पिछड़ी जातियों के लोग, सभी के डीएनए में समानता है। दरअसल हरियाणा में राखीगढ़ी नाम की जगह पर कुछ साल पहले खुदाई में मानव कंकाल मिले थे। राखीगढ़ी का ताल्लुक सिंधु घाटी सभ्यता से है। जब उन हड्डियों की डीएनए जांच कराई गई तो पाया गया कि मध्य एशिया के देशों जैसे ईरान, किसी यूरोपीय देश या किसी अन्य प्राचीन सभ्यता से उनका डीएनए मैच नहीं करता है। दरअसल एक अंग्रेज पुरातत्वविद मॉर्टिमर व्हीलर (1890-1976) ने यह थ्योरी दी थी कि उत्तर भारत में मिलने वाले गोरे लोग दरअसल आर्य हैं जो मध्य एशिया से भारत में आए थे। जबकि द्रविड़ और कुछ दूसरी जातियां भारत की मूलनिवासी हैं। देश में दरार डालने वाले इस सिद्धांत का पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पुरजोर समर्थन किया। जबकि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और कई दूसरे विद्वान इसके कट्टर विरोधी थे।
क्या है अध्ययन के नतीजे
इस अध्ययन की अगुवाई करने वाले प्रोफेसर वसंत शिंदे ने मीडिया को बताया है कि डीएनए स्टडी और दूसरे अध्ययनों में कहीं भी आर्यों के आक्रमण या उनके बाहर से भारत आने के संकेत नहीं मिलते हैं। शिकार करने और आपस में झुंड बनाकर रहने के काल से लेकर आधुनिक समय तक इसके कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं पाए गए। करीब 3 साल तक चले इस अध्ययन में भारतीय आर्कियोलॉजिस्टों के अलावा हावर्ड मेडिकल स्कूल के डीएनए के विशेषज्ञ भी शामिल थे। इन नतीजों को मशहूर अंतरराष्ट्रीय जर्नल ‘सेल’ में भी प्रकाशित किया गया है। इस पेपर में कहा गया है कि भारतीय लोग आम तौर पर एक ऐसे जेनेटिक पूल से आते हैं जिसका ताल्लुक इसी क्षेत्र की प्राचीन सभ्यता से है। इसके लिए राखीगढ़ी में मिले कंकालों पर हुए अध्ययन को आधार बनाया गया है। हरियाणा में हिसार के पास ये जगह करीब 300 हेक्टेयर में फैली हुई है। वैज्ञानिक जांचों में यह साबित हुआ है कि हड़प्पा काल में राखीगढ़ी अपने पूरे विकसित रूप में बसा हुआ था। यह समय ईसा से 2800 से 2300 साल पहले का था। यानी आज से करीब 5000 साल पहले। यही वो समय है जिसे महाभारत का माना जाता है।
कांग्रेसी झूठ की पोल खुली
देश में स्कूलों में इतिहास की किताबों में पढ़ाया जाता रहा है कि आर्य बाहर से आए थे और भारत में आकर बस गए थे। इस थ्योरी के कारण ही उत्तर-दक्षिण जैसे विवादों का जन्म हुआ। अंग्रेजों ने तो यह थ्योरी भारतीयों को आपस में बांटकर उन पर राज करने की नीयत से लॉन्च की थी, लेकिन यह रहस्य है कि आजादी के बाद नेहरू सरकार ने इसे बढ़ावा क्यों दिया। खुद नेहरू ने अपनी किताब ‘भारत एक खोज’ में इसी सिद्धांत को सही ठहराया है। जबकि उस दौर के दूसरे इतिहासकार और विद्वान इसके कट्टर विरोधी थे। नेहरू के बाद रोमिला थापर और रामचंद्र गुहा जैसे वामपंथी इतिहासकारों ने भी इस थ्योरी को हवा दी। जबकि आर्यों के आक्रमण या उनके बाहरी होने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। ये डीएनए स्टडी करने वाले वसंत शिंदे पुणे के डेकन कॉलेज के प्रोफेसर हैं। उनके साथ हावर्ड मेडिकल स्कूल के वागीश नरसिम्हन और डेविड रीच और बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेस के नीरज राय शामिल हैं।