ईरान से सटती हुई हमारे महान देश की सीमाएं आज राजस्थान के बॉर्डर पर आकर सिमट गईं। क्यों? क्योंकि हमें हमारे चारण भाटों की बातों का विश्वास हो चला था कि हमारी हस्ती तो कभी मिट ही नहीं सकती। जो भगवा कभी गंधार पर फहराया करता था आज उसे हम कश्मीर में नहीं फहरा सकते। क्यों? क्योंकि सेकुलरिज्म का काला चश्मा पहन हम इतने अंधे हो गए कि सच को नंगी आखों से देखने के बाबजूद हम उसे झुठलाते रहे। आज हम फिर वही गलती कर रहे हैं। दुश्मन हमारी सीमा पर ही नहीं बल्कि हमारे घर के अंदर तक घुस चुका है। 40 हजार से ज्यादा संभावित आतंकी हमारे देश का अन्न जल और तमाम सुख सुविधाएँ भोग रहे हैं और हम बुद्ध बने बैठे हैं। वो आतंकी चेहरे पर पीड़ित होने का नकाब ओढ़ हमसे हमारी सिंपैथी ले रहे हैं और हमारे ही घर जला रहे हैं। प्रतिकार में जब हम उन्हें यहाँ से निकाल रहे हैं तो हमें ही हमारे वसुधैव कुटुम्बकम और अहिंसा परमो धर्मं:का पाठ रहे हैं।
मित्रों, जहाज सुंदरी (एयरहोस्टेस) सिर्फ एक बात बहुत प्यार से समझाती है। “इन स्टेट ऑफ़ पैनिक प्लीज़ वियर योर मास्क फर्स्ट एंड देन असिस्ट दि अदर पर्सन।” हमारे खुद के छोटे से देश में 130 करोड़ लोग पहले से मौजूद हैं। साला शाम तक साँस लेने तक में दिक्कत होने लगती है। राजस्थान के लोग वैसे ही प्यासे मर रहे हैं। केरला में वामपंथी कत्ल कर देते हैं। बंगाल में दीदी चैन से सोने नहीं देती। कश्मीर की तो बात करना ही बेकार है। ऐसी हालत में पहले अपनी फटी जेब में पहले टाँके लगवाएं या इनकी सहलाएं?
मित्रों एक चीज़ क्रिस्टल के माफिक साफ है। आपको एक बार फिर वसुधैव कुटुंबकम जैसे नारों के साथ मूर्ख बनाने की पूरी तैयारी है। फिर से इक़बाल का गाना शुरू हो चुका है और फिर से आपके हाथ में पाकिस्तान नाम का लल्ला थमा दिया जायेगा। बेहतर है इस बार आप जग जाए और जो शरण मांगने के लिए बांग दे उसके औद्योगिक क्षेत्र पर जोर से लात लगाकर बोलें…
जर्रे जर्रे में शामिल है हमारे लहू के कतरे
हाँ हिन्दोस्तां हमारे बाप का ही है…