मुंबई में मेट्रो के लिए पेड़ काटने के मामले में चल रहे विरोध-प्रदर्शनों में ईसाई मिशनरियों का हाथ सामने आया है। यहां आरे मिल्क कॉलोनी इलाके में मेट्रो के शेड का निर्माण होना है, जिसके लिए करीब 2700 पेड़ काटने की जरूरत है। इसे लेकर कुछ संदिग्ध किस्म के एक्टिविस्ट और फिल्म कलाकार विरोध कर रहे हैं। जबकि इसी जगह के पास फिल्म सिटी के स्टूडियो और रॉयल पाम होटल भी हजारों पेड़ काट कर ही बनाए गए हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या तब उनको पर्यावरण की चिंता नहीं सता रही थी? दरअसल पूरे मामले की जो सच्चाई सामने आ रही है वो चौंकाने वाली है। इस पूरे विरोध प्रदर्शन में ईसाई मिशनरियों का हाथ है, क्योंकि वो इस जमीन पर कब्जा करने की फिराक में थे। इससे पहले भी चर्च तमिलनाडु में कुडनकुलम न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्ट, स्टरलाइट और कोंकण रेलवे जैसी कई विकास योजनाओं में रुकावट डालने की कोशिश कर चुका है। इस मामले में प्रकाश अंबेडकर जैसे लोगों के कूदने से भी यह शक मजबूत हुआ है कि जरूर इस मामले में ईसाई मिशनरियों का हाथ है।
हड़पने की फिराक में था चर्च
अप्रैल 2018 में आरे कॉलोनी के पास की करीब 5000 वर्ग मीटर जमीन ईसाई कब्रिस्तान और चर्च बनाने के नाम पर देने की सहमति हुई थी। लेकिन बाद में मेट्रो प्रोजेक्ट आने के कारण बीएमसी को इसे रोकना पड़ा, क्योंकि जमीन का ये हिस्सा प्रस्तावित मेट्रो शेड के तहत आ रहा था। जैसे ही ये फैसला हुआ कैथोलिक चर्च परेशान हो उठा, क्योंकि प्राइम लोकेशन की इस जमीन पर उसकी नज़र कई साल से थी। चूंकि सीधे तौर पर विरोध नहीं किया जा सकता था, इसलिए पेड़ काटे जाने के विरोध का बहाना बना लिया। बांद्रा में सेंट पीटर्स चर्च ने 15 सितंबर 2019 को एक हस्ताक्षर अभियान चलाया था, जिसमें लोगों से अपील की गई थी कि वो मेट्रो शेड के लिए पेड़ काटे जाने का विरोध करें। पर्यावरण के नाम पर बहुत सारे लोग असल मामला समझ नहीं पाए और उन्होंने दस्तखत भी कर दिया। इतना ही नहीं, बांद्रा के एक कैथलिक स्कूल ने बच्चों के मां-बाप से कहा कि वो “आरे फॉरेस्ट को बचाने के अभियान” में शामिल हों। स्कूली बच्चों को आंदोलन के लिए इस्तेमाल करना चाइल्ड लेबर कानून के तहत दंडनीय अपराध है। एक स्थानीय संस्था ने इस बारे में स्कूल की प्रिंसिपल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। स्कूल की ड्रेस पहने प्रदर्शन करने आए बच्चों की तस्वीरें अखबारों में भी छपी थीं। आरे मिल्क कॉलोनी में रहने वाले एक शख्स ने बताया कि “पेड़ काटे जाने का विरोध करने वाले ज्यादातर लोग शुरू में नहीं समझ पाए थे कि उन्हें पर्यावरण के नाम पर बेवकूफ बनाया गया है। मामला समझ में आने के बाद बहुत सारे लोग विरोध-प्रदर्शन से हट चुके हैं। लोग यह पूछने लगे हैं कि क्या अगर जमीन पर ईसाई कब्रिस्तान बनता तो पेड़ नहीं काटे जाते?”
एनजीओ की भूमिका पर शक
मेट्रो शेड के विरोध में ‘वनशक्ति’ नाम के एक एनजीओ का नाम सामने आ रहा है। कहा जा रहा है कि पर्यावरण की आड़ में ये एनजीओ कुछ और ही काम करता है। मुंबई में कुछ संस्थाओं ने गृह मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर कहा है कि वो ‘वनशक्ति’ एनजीओ को विदेश से मिलने वाले फंड की जांच कराएं, ताकि पता चल सके कि आंदोलन के नाम पर प्रोजेक्ट में अड़ंगा डालने के लिए इतना पैसा कहां से आया। नीचे तस्वीर में आप देख सकते हैं कि मेट्रो का शेड जहां बनना है वो जगह दरअसल कितनी छोटी है। गूगल अर्थ की तस्वीर में ये जगह पीले रंग में दिखाई गई है। आरे कॉलोनी इससे सटी हुई है। ये दोनों ही जगहें संजय गांधी नेशनल पार्क की सीमा से अच्छी-खासी दूरी पर हैं। जबकि मीडिया के जरिए झूठ फैलाया गया कि जंगल की जमीन पर पेड़ काटे जा रहे हैं। इतना ही नहीं, मुंबई मेट्रो ने इस बात का भरोसा दिलाया है कि जो पेड़ काटे जाएंगे उनकी जगह नए पेड़ लगाए जाएंगे।
पहले भी चर्च कर चुका है ये काम
यह देखा गया है कि चर्च अक्सर विकास के ऐसे मामलों में पर्यावरण और दूसरे नाम पर अड़ंगेबाजी करता रहता है। तमिलनाडु के कुडनकुलम में कुछ साल पहले न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्ट के खिलाफ जमकर विरोध हुआ था। बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खुद खुलासा किया था कि उस मामले में चर्च की भूमिका थी। दरअसल चर्च नहीं चाहता था कि उस आदिवासी इलाके में विकास की कोई रोशनी पहुंचे, ताकि वो वहां आराम से धर्मांतरण करवा सकें। इसी तरह महाराष्ट्र में कोंकण रेलवे के विरोध में भी चर्च का हाथ पाया गया था।
@LegalLro filed Complaint against Archbishop Bombay n Anna Correa, St Stanislaus School Principal under JJ Act,RTE Act n Child Labour Act 1986 lodged at @NCPCR @KanoongoPriyank @LabourMinistry , #CatholicChurch forced kids of #Church schools to take part in #SaveAarey pic.twitter.com/LKayNYbu8j
— Defence360_Official (@Defence_360) October 4, 2019